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आखिर BJP लोकसभा चुनाव 2024 से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड पर क्यों दे रही है जोर?

बीजेपी को मुस्लिम समुदायों और विपक्षी दलों से यूनिफॉर्म सिविल कोड के मजबूत विरोध को लेकर राजनीतिक रूप से लाभ होने की भी उम्मीद है. सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अंतिम मसौदा पेश करने से पहले कई पहलुओं पर विचार करना होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को भोपाल में वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने के बाद हुई एक रैली में समान नागरिक संहिता को लेकर अपना रुख साफ कर दिया. पीएम ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने मूल और वैचारिक मामलों पर आक्रामक रहेगी.

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पीएम मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के अपने समर्थन को संवैधानिक समानता और देश की एकता के आसपास केंद्रित किया. उन्होंने तीन तलाक के बारे में भी बात की. 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था.

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निफॉर्म सिविल कोड राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक लक्ष्य है और बीजेपी शासित कई राज्यों में यह पार्टी के घोषणा-पत्र का एक अहम हिस्सा भी है. पिछले साल उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी के कार्यान्वयन के लिए एक समिति का गठन किया था. पैनल वर्तमान में इस मुद्दे पर देशभर से सुझाव ले रहा है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाले पैनल ने कोड के प्रारूप से संबंधित 90 प्रतिशत काम पूरा कर लिया है. इसे 30 जून तक पेश किया जाएगा, जिसके बाद राज्य इसे लागू करने के लिए कदम उठाएगा.

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केंद्र समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर जोर दे रहा है, जो धर्म, लिंग या जाति के बावजूद सभी भारतीयों पर लागू होगा. लेकिन इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं. कानूनों का एक सेट कई मौजूदा व्यक्तिगत कानूनों की जगह कैसे लेगा, जो विवाह, विरासत, गोद लेने और तलाक को नियंत्रित करते हैं. कुछ कानून धर्म और कभी-कभी क्षेत्र के आधार पर भी अलग होते हैं. क्या यूसीसी में इन क्षेत्रों को अलग से लिया जाएगा? क्या व्यक्तिगत कानूनों के कुछ पहलुओं को यूसीसी में समायोजित किया जाएगा? क्या पूरी तरह से कानूनों का एक नया सेट बनेगा? क्या यह बहुविवाह के मुद्दों पर विचार करेगा, जो अक्सर हिंदू समूहों द्वारा उठाए जाते हैं.

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कानूनों को लिंग के आधार पर समान बनाने के लिए भी कई कोशिशें हुई हैं. कम से कम हिंदुओं और ईसाइयों में तो ऐसे उदाहरण मिलते हैं, लेकिन इसकी जटिलता अभी भी मौजूद है. जब आप घरेलू हिंसा अधिनियम या गोद लेने के नियमों को देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि महिलाओं और बच्चों के हित को ध्यान में रखा गया था. लेकिन गौर से देखने पर इसमें भी कुछ खामियां मिलेंगी. स्पष्ट रूप से सरकार को एक बड़ी परामर्श प्रक्रिया भी चलानी होगी. सिख समूहों और जनजातीय समुदायों तक पहुंचना होगा, जो सदियों से अपने रीति-रिवाजों का पालन करते आए हैं और ऐसे नए कानून की तरफ नहीं मुड़ जाएंगे.

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कांग्रेस प्रस्तावित यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ विरोध का नेतृत्व कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि पिछले विधि आयोग ने कहा था कि समान नागरिक संहिता का होना इस स्तर पर न तो जरूरी है और नहीं वांछनीय. कांग्रेस का कहना है कि यूसीसी असल में केंद्र की अन्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति है. खासकर तब जब मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. डीएमके, जेडीयू, आरजेडी, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस ने भी यूसीसी को लेकर सरकार की आलोचना की है.

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