सिक्किम में आये भयंकर प्राकृतिक आपदा से निपटने की चुनौती दिनों दिन बड़ी हो रही है. त्रासदी के 72 घंटे बाद भी सेना के जवान और आम लोग लापता हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या आपदा प्रभावित इलाकों में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम काम नहीं कर रहा था ? क्या सेना के यूनिट को इस आपदा की संभावना की चेतावनी दी गयी थी? सिक्किम में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट के बाद बड़ी बाढ़ त्रासदी को लेकर कई बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं. जिस तरह से भारतीय सेना के साथ-साथ आम नागरिक इसकी चपेट में आये, उससे साफ है कि उन्हें इस खतरे का कोई अंदेशा नहीं था. तीस्ता नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी को लेकर कोई चेतावनी उन्हें नहीं दी गई थी.
इस साल 29 मार्च को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में जल संसाधन मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने आगाह किया था. समिति ने कहा था कि सिक्किम में कुल छोटे-बड़े 694 ग्लेशियल लेक्स यानी हिमनद झील हैं. लेकिन आपदा के दृष्टिकोण से संवेदनशील इस राज्य में केवल 8 बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशन सेटअप किये गए हैं. हिमालय-कराकोरम क्षेत्र वैश्विक औसत की तुलना में 0.5 डिग्री सेंटीग्रेड तेज गति से गर्म हो रहा है. इससे ग्लेशियरों के पिघलने की रफ़्तार बढ़ने से आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी. इससे 10 साल पहले ISRO और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च पेपर में सिक्किम में साउथ ल्होनक लेक के फटने का खतरा जताया था.
अर्ली वार्निंग सिस्टम रिकमेंड किया गया था
अमृता विश्व विद्यापीठम की असिस्टेंट प्रोफेसर एस एन रम्या ने NDTV से कहा, “2019 में मैंने 2013 की अपनी रिसर्च को फॉलो किया था. 2000 से 2015 तक लेक की लंबाई आधा किलोमीटर बढ़ गई थी. जो गहराई है, वो औसतन 50 मीटर तक हो गयी है. सिक्किम में जो लेक फटा है, उसके बारे में हमने प्रेडिक्ट किया था. हमने कहा था कि इसकी वजह से 19 मिलियन क्यूबिक मीटर तक पानी रिलीज़ हो सकता है. हमने कहा था कि ये लेक खतरे में हैं. हमने अर्ली वार्निंग सिस्टम रिकमेंड किया था.”
सीएम ने पिछली सरकार पर लगाए आरोप
अब सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए शुक्रवार को कहा, “पिछली सरकार ने इस रिपोर्ट पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं की, रिपोर्ट पिछली सरकार को दी गई है, लेकिन उन्होंने इसपर पहल नहीं की. अब इस हादसे के बाद हमारी टेक्निकल कमिटी इस हादसे की जांच करेगी. फिलहाल इन सवालों के बीच आपदा का खतरा अभी सिक्किम पर अभी टला नहीं है. मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. एम मोहपात्रा ने कहा, “ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट के इंपैक्ट की मॉनिटरिंग और प्रेडिक्शन करना ज़रूरी है. हमें मौसम की बेहतर मॉनिटरिंग करनी होगी”.
बहरहाल, सिक्किम में भयंकर त्रासदी एक बड़ी चेतावनी है. इस बार अगर सीख नहीं ली गई और ग्लेशियल लेक्स की मॉनिटरिंग नहीं बढ़ाई गई, तो त्रासदी का दायरा भविष्य में और बड़ा हो सकता है.