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कर्नाटक में पक्की हुई BJP-JDS की ‘दोस्ती’, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कितना बदल जाएगा सियासी गणित?

कर्नाटक की आबादी में करीब 17 फीसदी भागीदारी वाला लिंगायत समुदाय बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. जबकि लिंगायत के बाद करीब 15 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिंगा समुदाय दूसरा सबसे प्रभावशाली समाज है. ये JDS का वोटर माना जाता है.

कर्नाटक में चार महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में BJP और JDS को कांग्रेस के हाथों अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने चुनाव में केवल 66 सीटें जीतीं और सत्ता से बाहर हो गई. जबकि जेडीएस को सिर्फ 19 सीटें मिली. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 135 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया और सिद्धारमैया की सरकार बनी. 2024 का लोकसभा चुनाव अब कर्नाटक में बीजेपी और जेडीएस दोनों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. दोनों पार्टियों ने चुनाव से पहले गठबंधन की घोषणा की है, लेकिन अभी तक सीट-बंटवारे की डिटेल सामने नहीं आई है.

बीजेपी-जेडीएस का गठबंधन
सीनियर बीजेपी नेता और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने पिछले हफ्ते गठबंधन की खबर ‘ब्रेक’ की थी. उन्होंने कहा था कि डील के तहत जेडीएस को राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से 4 सीटें मिलेंगी. बीजेपी सूत्रों और बाद में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने इसे खारिज किया. कुमारस्वामी ने कहा कि सीट शेयरिंग पर अभी तक कोई चर्चा ही नहीं हुई है. दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस संरक्षक एचडी देवेगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी ने भी उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया, जिनमें उनकी पार्टी ने मांड्या और तुमकुर सीटों की मांग की थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी कोई मांग नहीं की गई है.

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बीजेपी और जेडीएस गठबंधन क्यों चाहती है?
आंकड़ों पर गौर करें, तो 2023 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में जेडीएस का प्रदर्शन बीजेपी के लिए किसी भी डील या गठबंधन के लिहाज से एक समझदार विकल्प नहीं लगता है. 2023 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस का वोट शेयर 13.30 फीसदी था. 2018 में पार्टी का वोट शेयर 18.30 फीसदी था. यानी पांच साल के अंदर जेडीएस के वोट शेयर में 5 फीसदी की कमी आई है. जबकि 2018 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 36.40 फीसदी था, जो 2023 में घटकर 35.90 फीसदी रह गया है. कांग्रेस की बात करें तो 2018 में इसका वोट शेयर 38.60 फीसदी था, जो 2023 के चुनाव में बढ़कर 42.99 फीसदी हो गया है. ऐसे में साफ है कि राज्य में अपनी मजबूत स्थिति बनाने के लिए बीजेपी और जेडीएस को हाथ मिलाना ही होगा. क्योंकि पुराने मैसूरु क्षेत्र के 8 लोकसभा सीटों पर अभी भी जेडीएस का दबदबा है. इनमें मांड्या, हासन, बेंगलुरु (ग्रामीण) और चिकबल्लापुर शामिल हैं. पार्टी यही सीटें कथित तौर पर बीजेपी से डील के हिस्से के रूप में चाहती थी. इसमें तुमकुर भी शामिल है, जिस सीट से देवेगौड़ा 2019 में चुनाव हार गए थे.

जेडीएस किस बात पर अड़ी है?
जेडीएस अपनी पसंद की सीटें चाहती हैं. पार्टी सुप्रीमो देवेगौड़ा ने मीडियाकर्मियों से कहा, “हमने पीएम मोदी जी से संपर्क किया. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जब हमसे बातचीत की इच्छा जताई, तब हमने भी उनसे बात की. ये सच है. लेकिन मुझे ये सीट चाहिए… ऐसा मैंने कुछ भी नहीं पूछा. सच बोलना जरूरी है. हमने देवेगौड़ा के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए नहीं, बल्कि इस पार्टी को बचाने के लिए बात की, जिसे मैंने 40 साल तक पाला-पोसा है.” देवेगौड़ा ने यह भी बताया कि उन्हें क्यों लगता है कि बीजेपी को उनकी जरूरत है. देवेगौड़ा ने स्वीकार किया कि जिन क्षेत्रों में उनकी पार्टी को प्रभावशाली माना जाता है, वहां उनके पास वोट हैं. लेकिन बीजेपी को यह नहीं सोचना चाहिए कि जेडीएस के पास कुछ भी नहीं है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को हमारी पार्टी को हल्के में नहीं लेना चाहिए. देवेगौड़ा ने कहा, “अन्य सीटों के लिए भी चेतावनी दी गई. बीजापुर और रायचूर में बीजेपी तभी जीत सकती है, जब उन्हें मेरी पार्टी का साथ मिलेगा. बीदर और चिक्कमगलुरु में भी हमारे पास वोट हैं.” दोनों पार्टियों के साथ आने से राज्य में NDA का वोट बेस करीब 32 फीसदी हो जाएगा. गठबंधन की स्थिति में दोनों ही दलों के वोट एक-दूसरे को कितना ट्रांसफर हो पाते हैं ये एक अलग बात है, लेकिन सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से NDA की जमीन को मजबूती मिल सकती है

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