अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस देने के मामले में 7 जजों की बेंच का फैसला शुक्रवार को आया. हालांकि यह फैसला सर्वसम्मति से नहीं बल्कि 4:3 के अनुपात में आया है. फैसले के पक्ष में सीजेआई, जस्टिस खन्ना, जस्टिस पारदीवाला जस्टिस मनोज मिश्रा एकमत रहे. वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा का फैसला अलग रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का अल्पसंख्यक का दर्जा फिलहाल बरकरार रखा है, लेकिन साथ में यह भी साफ किया कि एक नई बेंच इसको लेकर गाइडलाइंस बनाएगी. CJI ने अपने फैसले में बताया कि एक 3 सदस्यीय नियमित बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर फाइनल फैसला करेगी. यह बेंच 7 जजों की बेंच के फैसले के निष्कर्षों और मानदंड के आधार पर AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के बारे में अंतिम फैसला लेगी.
AMU के लिए राहत क्यों है?
20 अक्टूबर 1967 के एस. अजीज बाशा और अन्य बनाम भारत संघ के फैसले में कोर्ट ने नजीर दी थी कि किसी अल्पसंख्यक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा तब मिलेगा, जब उसकी स्थापना उस समुदाय के लोगों ने की हो. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मामले में तर्क यह था कि चूंकि इसकी स्थापना मुस्लिमों ने नहीं की है और यह कानून के जरिए अस्तित्व में आया, इसलिए यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया.