आप ने अक्सर सस्पेंशन यानी निलंबन की खबर सुनी होगी . ये एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही किसी भी कर्मचारी की नींद उड़ जाती है. इस दौरान सिर्फ कुर्सी ही हाथ से नहीं जाती, बल्कि सबसे बड़ा झटका जेब पर पड़ता है. क्योंकि निलंबन का मतलब है कि आपकी तनख्वाह पूरी नहीं मिलेगी, भत्ते कट जाएंगे और महीने का बजट गड़बड़ा जाएगा. यानी सस्पेंशन सिर्फ नौकरी पर ही असर नहीं डालता, बल्कि घर-गृहस्थी से लेकर मानसिक शांति तक सब छीन लेता है.

सस्पेंशन की अवस्था में कितनी मिलती है सैलरी?
अगर कोई सरकारी कर्मचारी को सस्पेंड किया जाता है तो सस्पेंशन के अवधि में पूरी तनख्वाह नहीं मिलती. उसकी जगह सिर्फ एक हिस्सा दिया जाता है, जिसे जीवन निर्वाह भत्ता कहते हैं. इस नियम के तहत पहले 90 दिनों तक आपको बेसिक वेतन का केवल 50% मिलेगा यानि आपको अपनी आधी तनख्वाह पर ही महीने का खर्चा चलाना पड़ेगा. इस नियम के तहत ये जरुर प्रवधान है कि अगर आपके खिलाफ हो रही जांच जल्दी खत्म नहीं होती और जांच में हो रही देरी कर्मचारी की वजह से नहीं है, तो यह भत्ता बढ़कर 75% तक मिल सकता है.लेकिन अगर जांच लंबी खिंचने की वजह खुद कर्मचारी है, तो उसे 50% से ज्यादा पैसा नहीं मिलेगा.

भत्तों पर भी लग जाता है ब्रेक
सस्पेंशन के दौरान सिर्फ तनख्वाह ही नहीं, बाकी अन्य मिलने वाले फायदे में भी कटौती की जाती है. जैसे मकान किराया भत्ता (HRA) और दूसरे अलाउंस मिलना बंद हो जाते हैं. जिससे आपकि सैलरी बेसिक वेतन के उस हिस्से तक सिमट जाता है, जो जीवन निर्वाह भत्ते के तौर पर तय किया गया है. ये सब प्रावधान केंद्रीय सिविल सेवा नियम और अखिल भारतीय सेवा नियम के तहत आते हैं. यानी चाहे कोई अधिकारी रेलवे में हो या किसी मंत्रालय में सबके लिए नियम एक जैसे ही हैं. सस्पेंशन सिर्फ कुर्सी और पावर छीनने की सजा नहीं है, बल्कि रोजमर्रा जिंदगी पर ब्रेक लगाने का भी काम करती है ऐसे में कर्मचारी के लिए आधी तनख्वाह और कटे हुए फायदे बड़ा झटका के समान होता हैं.
