बाजार से जो आप जो चिकन खरीदते हैं क्या वो एंटीबायोटिक्स से भरा होता है? सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट यानि CAE के एक लैब रिसर्च में ये पाया भी गया है कि चिकन में 40 फीसदी एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष होते हैं. जिसे खाने से चिकन में मौजूद एंटीबायोटिक शरीर में ट्रांसफर हो जाता हैं. जिसके बाद जब भी आप बिमार होते है या फिर आप एंटीबायोटिक लेते है तो एंटीबायोटिक दवाओं का वैसा असर नहीं होता, जैसा अमूमन होना चाहिए. क्योकि आपका शरीर एंटीबायोटिक का आदी हो चुका होता है
दरअसल, चिकन को बीमारी से बचाने, उन्हें बड़ा करने और वजन बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक का धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है. ऐसे में इसे खाने से चिकन में मौजूद एंटीबायोटिक शरीर में ट्रांसफर हो जाते हैं, जो अपनी जगह बना लेते हैं और इंसानी शरीर इसका आदी हो जाता है. वहीं इंसान के बीमार होने पर एंटीबायोटिक दवाएं जल्द असर नहीं करतीं और उसे हाई डोज दिया जाता है, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है.
आमतौर पर ये माना जाता है कि चिकन प्रोटीन, विटामिन और मिनरल से भरा होता है. लेकिन हाल के कुछ रिसर्च में ये भी पता चला है कि इसे खाने वालों की इम्यून क्षमता कम हो सकती है और उन पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर काफी धीमा हो जाता है. हालांकि इसका प्रभाव अलग-अलग इंसान पर अलग-अलग हो सकता है.
एक अध्ययन के मुताबिक जब तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध और सुपरबग को लेकर कानून प्रभावी ढंग से लागू नहीं होते, तब तक भोजन के लिए उपयोग किए जाने वाले जानवरों को लेकर अधिक पारदर्शी होने की जरूरत है, कि क्या उन्हें एंटीबायोटिक दवाएं देकर पाला जा रहा है? एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है और ये लगभग 1.27 मिलियन मौतों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार था. 2019 में इससे दुनिया भर में 4.95 मिलियन मौतें हुईं.