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बिहार में NDA की प्रचंड जीत का चाणक्‍य कौन? किस रणनीति से महागठबंधन को कर दिया चारों खाने चित

पीएम मोदी–नीतीश की विश्वसनीयता, महिलाओं को 10 हजार की सहायता और बूथ तक कामगारों को पहुंचाने की रणनीति ने जीत पक्की की. आरएसएस का ज़मीनी नेटवर्क भी बड़ी जीत का आधार बना.

बिहार चुनाव की तूफानी जीत के ऐसे तो कई हीरो हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू, मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का बेदाग चेहरा और चुनावी रणनीति के जादूगर कहे जाने वाले गृह मंत्री शाह और चुनावी अभियान को जमीन तक ले जाने वाले केन्द्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान हैं. लेकिन इन सबसे अलग एक शख़्स है जिस पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री शाह ने भरोसा करके काफी पहले ही बिहार की कमान सौंप दी थी जिसने ना केवल बिहार में बीजेपी की जमीन को और मजबूत किया बल्कि सहयोगी दलों को भी साधने का काम किया.

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बीजेपी बिहार प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को जब हरियाणा से हटाकर बिहार जैसे जटिल प्रदेश की जिम्‍मेदारी दी गई तो कई राजनीतिक विश्लेषकों की भौंहें तन गईं और आलोचनाओं की लाइन लगा दी कि महाराष्ट्र में किस कदर बिहारियों का अपमान वहां की राजनीति के मद्देनजर होता है और ऊपर से महाराष्ट्रियन नेता को बिहार का प्रभारी बनाकर बीजेपी ने आग में घी डालने का काम किया है. लेकिन वसीम बरेलवी ने लिखा है- “जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग का अपना मका नहीं होता…”

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छात्र राजनीति से मंझे हुए नेता विनोद तावड़े को विद्यार्थी परिषद से ही रहे अपने पुराने वरिष्ठ साथी क्षेत्रीय संगठन मंत्री नागेन्द्र नाथ और चुनाव प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान का साथ मिलने से काम करने का फ़्री हैंड मिला और तालमेल बैठाने में भी सफलता मिली और यही कारण था कि केन्द्रीय नेतृत्व के साथ कई अहम मुद्दों पर चुनावी रणनीति को नीचे तक समयबद्ध तरीके से ले जाने में सफलता मिली. इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जिस तरह से 10 हजार रूपये उनके एकाउंट में डाले गये उसने आधी आबादी को एनडीए की जीत की राह प्रशस्त कर दी लेकिन तूफ़ानी जीत की रणनीति को भी समझना होगा.

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एनडीए का जातिगत समीकरण- सूत्रों के मुताबिक गृहमंत्री शाह के निर्देश पर चुनाव से बहुत पहले विनोद तावड़े ने कई बैठकें कीं और सभी 243 सीटों पर जातिगत समीकरण का पता लगाया और यह सुनिश्चित किया कि अगर सीटें गठबंधन को भी मिलती हैं, तो भाजपा द्वारा तय की गई जाति का ही उम्मीदवार होना चाहिए और आखिरकार धर्मेन्द्र प्रधान, सम्राट चौधरी के साथ मिल कर सहयोगी दलों को मनाया और  95% सीटों पर ऐसा ही हुआ.

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विधानसभाओं में पहली बार एनडीए सम्मेलन- इसके साथ ही सभी विधानसभा क्षेत्रों में पहली बार एनडीए सम्मेलन कराये गये जिससे सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव से पहले ही बेहतर तालमेल बनाने में आसानी हुई, जिससे एनडीए कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊँचा रहा.

चिराग पासवान और जेडीयू को साधा – एक रणनीतिकार ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि 2020 में चिराग ने जदयू को नुकसान पहुँचाया, इसलिए हमने उनकी आकलन के हिसाब से ज़्यादा सीटों की माँग भी मान ली क्योंकि इस बात की परवाह नहीं थी कि चिराग कितनी सीटें जीतेंगे बल्कि हमारा ध्यान 6% पासवान वोटों पर था, जो हमेशा से उनका समर्थन करते रहे हैं.इसके अलावा हमने हर सीट पर और छोटे स्तर पर भी दूसरे राज्यों के नेताओं को तैनात किया.

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पीएम मोदी – सीएम नीतिश का जादू- पीएम मोदी-सीएम नीतीश की विश्वसनीयता भी बहुत बड़ा कारण इस जीत के पीछे है क्योंकि वो जो कहते हैं वो पूरा करते हैं. जबकि विपक्ष कई राज्यों में अपने वादे पूरा करने में नाकाम रहा है.

कुशवाह -राजपूत समीकरण पर फ़ोकस- इसके साथ ही मगध और शाहबाद क्षेत्र में पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा को साथ लाने का साहसिक फ़ैसला किया ताकि राजपूत और कुशवाहा एक साथ आ सकें और उसका परिणाम अब सामने है हालाँकि पैर छूने वाली तस्वीर दिखा कर विपक्षी दलों ने बाँटने की कोशिश की लेकिन वे नाकामयाब रहे.

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पीके को इग्नोर करने की रणनीति- चुनावी रणनीति के तहत पीके को महत्व नहीं दिया गया, इसलिए किसी भी भाजपा नेता ने प्रशांत किशोर के आरोपों पर ज़्यादा निशाना नहीं साधा. क्योंकि भाजपा की सोच यही थी कि अगर हम उन पर प्रतिक्रिया देंगे तो उन्हें ज़्यादा तवज्जो मिलेगी और उनकी प्रासंगिकता बढ़ेगी.

संकल्प पत्र में वंचित तबकों पर फ़ोकस- भाजपा को एक बात का एहसास हुआ कि राज्य के अंदरूनी इलाकों में  कुछ वर्ग ऐसे भी है जिन्हें नए हवाई अड्डों, राष्ट्रीय राजमार्गों और बुनियादी ढाँचे के विकास आदि के कारण ज़्यादा लाभ नहीं मिल पा रहा है. उन्हें कम से कम अभी तो कुछ बुनियादी मदद की ज़रूरत है – जेब में कुछ पैसे और राशन, ताकि जब तक अन्य बुनियादी ढाँचागत विकास परियोजनाएँ उन्हें लाभ पहुँचाना शुरू न कर दें, तब तक वे अपना जीवन चला सकें. इसके लिए विशेष तौर पर ध्यान दिया गया और संकल्प पत्र में शामिल किया गया. संकल्प पत्र के समय NDA के नेताओं ने विशेष तौर पर ध्यान दिया क्योंकि सभी को पता था कि प्रधानमंत्री मोदी इन घोषणाओं पर कड़ी नज़र रखते हैं ताकि वे पूरी हों और यह कोई रेवड़ी या मुफ़्त की बात न हो.

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बिहार के कामगारों को वोटिंग वाले दिन बूथ तक लाना – इसके साथ ही अलग अलग बीजेपी शासित राज्यों में काम कर रहे बिहार के कामगारों को चुनाव के समय उनके गांव तक भिजवाने की रणनीति ने भी बड़ी भूमिका निभाई. सूत्रों के मुताबिक हरियाणा में करीब 8 से 10 लाख बिहार के कामगार काम करते हैं जिनमें से 5 लाख लोगों को चुनाव के समय भिजवाने का काम किया गया और पार्टी और संघ की तरफ से सुनील शर्मा को इसका कॉर्डीनेटर बनाया गया था. इसी तरह से हर बीजेपी/एनडीए शासित राज्यों में ये किया गया.

संघ के साथ कदमताल – इसके अलावा जीत का एक महत्वपूर्ण फेक्टर RSS भी रहा जिसने पर्दे के पीछे रह कर तूफ़ानी जीत की गाथा में अहम इबारत लिखी और इसकी पूरी कमान संघ के सह सरकार्यवाह आलोक कुमार ने सँभाल रखी थी.  पीएम मोदी के कारण बढ़ा मत प्रतिशत- चुनाव का दिलचस्प पहलू ये भी रहा कि जहां जहां प्रधानमंत्री मोदी की जनसभाएं हुई वहां वहां वोटिंग परसटेंज काफ़ी बढ़ा. दिल्ली सीएम रेखा गुप्ता की रही डिमांड- इसके अलावा दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की डिमांड बिहार चुनाव में पीएम मोदी, गृहमंत्री शाह के बाद सबसे ज्यादा रही.

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