कहानी की शुरूआत होती है वर्ष 2011 से, जब भारतीय कुश्ती संघ का चुनाव जीत जम्मू-कश्मीर के दुष्यंत शर्मा इसके अध्यक्ष बनते हैं.. लेकिन हरियाणा कुश्ती संघ को यह बात हजम नहीं होती और वह इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दे देते हैं जिसके बाद कोर्ट के आदेश पर फिर से चुनाव होता है. तब दीपेंद्र हूडा भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनना चाह रहे थे.. लेकिन इस बीच तत्कालीन समाजवादी पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने भी चुनाव लड़ने का फैसला लिया.. इस समय समाजवादी पार्टी के समर्थन से कांग्रेस सत्ता में थी, ऐसे में बृजभूषण सिंह के आग्रह पर मुलायम सिंह ने अहमद पटेल से कहलवाकर दीपेंद्र हूडा को अपना नाम वापस लेने को कह दिया.. भारी मन से हूडा ने अपना नाम वापस ले लिया और 2012 में बृजभूषण सिंह अध्यक्ष बने..
चार साल के कार्यकाल इस अध्यक्ष पद पर बृजभूषण सिंह लगातार तीन बार 2012, 2015 और 2019 में जीतते आये हैं.. वर्ष 2014 में वह फिर से भाजपा के साथ आ गए.. भाजपा के सत्ता में आने से बृजभूषण सिंह को भी भाजपा का पूरा साथ मिला.. जानकारी के लिए बता दें, बृजभूषण सिंह पुराने भाजपाई रह चुके हैं.. और इनका जुड़ाव राममंदिर आंदोलन से रहा है और इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.. इस बीच दीपेंद्र हूडा भी लगातार तीसरी बार हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष चुने जाते रहे..
भारतीय कुश्ती संघ के इतिहास में बृजभूषण सिंह का कार्यकाल सबसे सफलतम रहा है क्योंकि इनके कार्यकाल में भारतीय पहलवानों ने सबसे अधिक पदक जीते हालाँकि इनमें अधिकांश पहलवान हरियाणा से थे..
भारतीय पहलवान के सेलेक्शन में खींच-तान नया नहीं है.. ऐसा ही एक वाकया है, जब २०१६ में सुशील कुमार और नरसिंह यादव के चयन को लेकर विवाद हो गया.. यह मुद्दा भी हरियाणा (सुशील कुमार) बनाम उत्तर प्रदेश (नरसिंह यादव) बना दिया गया.. सुशील कुमार ओलंपिक्स मेडलिस्ट रह चुके हैं और वह चाहते थे उनको ओलंपिक्स में भेजा जाए जबकि कुश्ती संघ नरसिंघ यादव के समर्थन में थी.. बाद में यह विवाद हाई कोर्ट तक पहुँच गया और नरसिंघ यादव को जीत मिली.. लेकिन इससे पहले वह ओलंपिक्स के लिए जा पाते उन्हें डोप टेस्ट में फेल पाया गया..
नरसिंघ ने आरोप लगाया था कि सुशील कुमार और हरियाणा कुश्ती संघ ने उनके खाने में कुछ मिला दिया था..
एक और विवाद वर्ष 2020 का है जब विनेश फोगाट को अपने जर्सी पर नेशनल लोगो के जगह अपने स्पोंसर्स का लोगो लगाकर रिंग में उतरने के लिए ससपेंड कर दिया गया था.. क्योंकि यह ओलंपिक्स नियमों के खिलाफ है और इसके लिए भारतीय ओलंपिक्स संघ को नोटिस थमा दिया गया था..
टोक्यो ओलंपिक्स के दौरान भी विनेश फोगाट ने अपनी टीम के अन्य महिला रेसलर्स के साथ रहने से माना कर दिया था जिसके बाद उसे अलग से एकोमोडेट करना पड़ा था.. बावजूद इसके विनेश एक भी मैडल नहीं जीत सकी..
विवाद तब और बढ़ गया जब WFI ने नवंबर 2021 में नए नियमों के साथ आयी.. जिसके तहत सभी खिलाडियों को नेशनल्स खेलना और ट्रायल्स देना जरुरी कर दिया गया, चाहे वह ओलंपिक्स और इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में मेडल्स ही क्यों न जीत चुके हों.. साथ ही सभी राज्यों के लिए कोटा भी निर्धारित कर दिया गया.. इस पर भारतीय और हरियाणा कुश्ती संघ आमने-सामने आ गए.. और हरियाणा संघ के भरपूर विरोध के बाद भी WFI ने नियमों में कोई रियायत नहीं दी..
बढ़ते विवाद को देखते हुए हरियाणा कुश्ती संघ को भंग कर दीपेंद्र हूडा को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और इसके बाद रोहतास सिंह को अध्यक्ष बनाया गया..
एक तरफ नए नियमों के विरोध में बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मालिक जैसे रेसलर्स ने गुजरात में आयोजित नेशनल गेम्स और नयी दिल्ली में हुए ट्रायल्स में हिस्सा ही नहीं लिया..
लेकिन इसके बाद दिसंबर २०२२ में WFI ने घोषणा कर दी कि जिन खिलाडियों ने सेलेक्शन ट्रायल्स में हिस्सा लिया है केवल उन्हें ही एशियाई गेम्स में हिस्सा लेने की अनुमति होगी.. कुश्ती संघ के इस फैसले के बाद बजरंग, विनेश और साक्षी जैसे खिलाडियों का पत्ता साफ़ हो गया..
इसके ठीक बाद, जनवरी २०२३ से रेसलर्स ने अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ खिलाड़ियों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर जंतर-मंतर पर डेरा जमाना शुरू कर दिया..
गौर करने वाली बात है कि शुरुआती दौर में उन्हें अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के कार्यशैली से आपत्ति थी लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता देख अब वह यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं.. नेशनल लेवल पर इस खबर को लेकर हाय-तौबा मचते देख सरकार ने जैसे ही आरोपों के जांच के लिए कमिटी बनाई यह सारे अपनी दुकान लेकर गायब हो गए..
अब मई 2023 में फिर से भारतीय कुश्ती संघ का चुनाव होने को है.. नियमों के हिसाब से कोई भी व्यक्ति तीन बार से अधिक अध्यक्ष नहीं चुना जा सकता है.. ऐसे में दीपेंद्र हूडा ने अपनी जीत लगभग तय मान ली थी लेकिन तभी कहानी में एक ट्विस्ट आता है कि बृजभूषण सिंह अपने बेटे का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करने वाले हैं…
अब समीकरण इस प्रकार हैं कि बजरंग, विनेश और साक्षी मालिक जैसे खिलाड़ी बिना ट्रायल्स दिए एशियाई गेम्स में जाना चाहते हैं वहीं दूसरी तरफ दीपेंद्र हूडा ने अपनी दावेदारी अध्यक्ष पद के लिए पेश की है.. ऐसे में सबका एक कॉमन दुश्मन है बृजभूषण सिंह..
अप्रैल 2023 के शुरुआत में उनके विरोध का एक कारण बृजभूषण सिंह के कठोर रवैये और गड़बड़ी भी बताया गया था.. लेकिन अब मुद्दा सिर्फ यौन उत्पीड़न के आरोपों के इर्द-गिर्द ही घुमाया जा रहा है.. अब इस मुद्दे को इनकैश करके हूडा एक तरफ WFI का कमान अपने हाथों में लेना चाहता है जिसके लिए वह 2012 से ही कोशिश करता आ रहा है.. लेकिन अब सरकार ने मई 2023 में प्रस्तावित चुनाव को टाल कर एक अस्थायी कमिटी का गठन कर दिया है..
इसके बाद यहाँ एंट्री होती है राजनीतिक गिद्धों की.. कर्नाटक में चुनाव तारीखों की घोषणा हो चुकी है जबकि राजस्थान और मध्यप्रदेश में इसी वर्ष चुनाव होने हैं.. साथ ही हरियाणा में भी अगले वर्ष विधान सभा चुनाव होने हैं.. अब गौर करने वाली बात यह है कि इस मुद्दे का राजनीति करण कर क्या चुनावी फायदे उठाये जा सकते हैं..
· भाजपा को महिला-विरोधी बताना,
· भाजपा को हरियाणा चुनाव से पहले जाट-विरोधी बताना,
· राजपूत और जाट समाज को एक-दूसरे से लड़ाना और
· अंत में हिन्दुओं में फूट डालना..
जाट समुदाय का राजस्थान और हरियाणा में अच्छी आबादी है.. भाजपा ने पिछले दो आम चुनावों में सफलतापूर्वक जातीय मतभेदों को पाटते हुए हिन्दुओं को एकजुट किया है लेकिन अब लड़ाई 2024 की है..
एक विषय यह भी है कि इन आरोपों के बीच यह भी जानना जरुरी है कि वे सात महिला खिलाड़ी कौन हैं जिन्होंने बृजभूषण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं?
दूसरी तरफ पोलिटिकल टूरिज्म के लिए राशन-पानी लेकर निकल जाने वाली प्रियंका गाँधी जिसने लड़की हूँ लड़ सकती हूँ जैसे नारों का खुद बिगुल दिया हो लेकिन इंडियन यूथ कांग्रेस के प्रेजिडेंट पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों में कोई करवाई नहीं की..
हाइबरनेशन में गए कोंग्रेसी जातिवादी भी अचानक से सक्रिय हो गए हैं और जमकर जातिगत जहर उगलते देखे जा रहे हैं..
वर्तमान हालात में एक दम साफ़ है कि कोई तो है जो है कि जाट और राजपूत समाज को लड़ाकर कौर राजनीतिक लाभ लेना चाह रहा है..