दिल्ली में बीजेपी का 27 सालों का वनवास खत्म हो गया है और 12 सालों तक सत्ता सुख भोगने के बाद आम आदमी पार्टी का वनवास शुरू हो गया है. आम आदमी पार्टी के कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए हैं. नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को बीजेपी के प्रवेश वर्मा चुनाव ने हरा दिया है. दिल्ली में BJP ने आखिर वह करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कोशिश में वह पिछले 27 सालों से लगी थी. दो दशक से भगवा रथ आकर दिल्ली में थम जाता था. बीजेपी लोकसभा चुनाव में दिल्ली जीतती और विधानसभा चुनाव में हार जाती. लेकिन 8 फरवरी 2025 को बीजेपी के लिए सब बदल गया. आइए जानते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की लुटिया क्यों डूबी और इसके पीछे प्रमुख कारण क्या हैं.

शराब नीति घोटाले का दाग
आम आदमी पार्टी अपने दामन पर लगे शराब घोटाले के दाग को छुड़ा नहीं पाई. बीजेपी पिछले तीन साल से इस मुद्दे पर उसे घेरते रही. हालात यह थी कि इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्य सभा सांसद संजय सिंह को जेल जाना पड़ा. वह इस मुद्दे को लेकर लगातार सड़कों पर रही. उसके नेता हर जगह इस घोटाले की चर्चा करती रहे.इसके जवाब में आप कानूनी दाव पेंच के अलावा अपने बचाव में कोई ऐसा तगड़ा तर्क नहीं दे पाई, जो जनता के समझ में आए.इसका खमियाजा आम आदमी पार्टी को हार के रूप में उठाना पड़ा.

भ्रष्टाचार के आरोप
आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के साथ ही उस पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लगने लगे थे.शराब घोटाले के अलावा दिल्ली जल बोर्ड का घोटाला इनमें से प्रमुख था. इस मामले में ठेकेदारों से पैसे वसूलने के लिए ठेकों को कम पैसे पर छोड़ने का आरोप लगा. इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रही है. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस मामले में भी आरोपी हैं. आम आदमी पार्टी के जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, वो पार्टी के सबसे बड़े नेताओं में हैं. यहां तक की इस आरोप से केजरीवाल भी नहीं बच सके, जिन्होंने आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी. बीजेपी ने लगातार आप पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और जनता के बीच पहुंची.

सीएम पद पर सस्पेंस
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में जेल गए थे. उन्हें जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शर्त लगाई थी कि वो मुख्यमंत्री तो रह सकते हैं, लेकिन किसी फाइल पर दस्तखत नहीं कर सकते हैं. इससे लोगों में इस बात की ऊहापोह रही कि अगर आप चुनाव जीत भी जाती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा. केजरीवाल भी कह चुके थे कि आतिशी कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं, ऐसे में लोगों को लगा कि शराब घोटाले का फैसला आने तक केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में कोई काम नहीं कर पाएंगे. इसलिए लोगों ने बीजेपी को ही वोट देने का फैसला किया.

नेताओं का पार्टी छोड़ना
दिल्ली में जब चुनाव प्रचार चरम पर था तो आम आदमी पार्टी के सात विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. इससे पहले आप के कई कैबिनेट मंत्री भी पार्टी का साथ छोड़कर दूसरी पार्टियों में जा चुके थे. इनमें कैलाश गहलोत और राजेंद्र पाल गौतम प्रमुख हैं. ये दोनों नेता कभी आप के प्रमुख चेहरा हुआ करते थे. इस बात का भी असर आप के चुनाव परिणाम पर पड़ा. आप लोगों में यह धारणा बना पाने में नाकाम रही कि पार्टी में सबकुछ ठीक-ठाक है और वहां नेतृ्त्व का कोई संकट नहीं है.

कांग्रेस का सुधरा हुआ प्रदर्शन
इस चुनाव में कांग्रेस भले ही कोई सीट नहीं जीत पाई है. लेकिन वह अपना वोट फीसदी बढ़ा पाने में कामयाब रही है. चुनाव आयोग के मुताबिक दोपहर पौने एक बजे तक बीजेपी को 46.86 फीसदी, आप को 43.23 फीसदी और कांग्रेस को 6.36 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को 2020 के चुनाव में 4.26 फीसदी वोट मिले थे. वो अब तक 2.10 फीसदी वोट बढ़ा पाने में कामयाब रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी कांग्रेस का वोट लेकर ही ताकतवर हुई थी. लेकिन कांग्रेस के थोड़े से सुधरे प्रदर्शन ने आप की लुटिया डुबा दी.
