संसद के विशेष सत्र के चौथे दिन राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) लंबी चर्चा के बाद पास हो गया. बिल के समर्थन 215 सांसदों ने वोट किए. विरोध में किसी ने वोट नहीं किया. वहीं सांसदों द्वारा 9 संशोधन पेश किए गए. लोकसभा में महिला आरक्षण बिल दो-तिहाई बहुमत से पास हो गया था. राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पर ऑटोमेटेड मल्टीमीडिया डिवाइस से वोटिंग हुई. कुछ सांसदों का वोट रिकॉर्ड नहीं होने पर उन्होंने पर्चियों से वोटिंग की. वहीं, लोकसभा में पर्चियों से वोटिंग कराई गई थी. बिल पास होने के बाद राज्यसभा और लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. संसद के दोनों सदनों से महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद इसे अब राष्ट्रपति के पास साइन के लिए भेजा जाएगा. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति मिलने के बाद महिला आरक्षण बिल कानून बन जाएगा.
33% रिजर्वेशन का प्रावधान
महिला आरक्षण बिल के मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा. लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा. इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है. यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा. यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा.
पीएम मोदी बोले- ये बिल हमारे देश की नारी शक्ति को नई ऊर्जा देगा
गुरुवार को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पर लंबी चर्चा हुई. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने महिला आरक्षण बिल (Women’s Reservation Bill)पर चर्चा का जवाब दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- “हमने बिल पर सार्थक चर्चा की है, भविष्य में इस चर्चा का एक एक शब्द काम आने वाला है. हर शब्द का अपना मूल्य है, महत्व है.” पीएम ने कहा कि नारी शक्ति को विशेष सम्मान सिर्फ विधेयक से नहीं मिल रहा है. इस विधेयक के प्रति सभी राजनीतिक दलों की सकारात्मक सोच होना, ये हमारे देश की नारी शक्ति को नई ऊर्जा देगा.
लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत से पास हुआ था बिल
एक दिन पहले ही लोकसभा में महिला आरक्षण बिल दो-तिहाई बहुमत से पास हुआ था. बिल के पक्ष में 454 वोट पड़े थे, जबकि इसके विरोध में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी और औरंगाबाद से सांसद इम्तियाज जलील ने वोट किया.
तीन दशक से अटका था महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव 3 दशक से अटका हुआ था. पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने इस मुद्दे को उठाया. इसके बाद 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था. लेकिन तब सपा और आरजेडी ने महिला आरक्षण बिल का विरोध किया. दोनों पार्टियों ने तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी. इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया.
महिला आरक्षण बिल कानून बन भी गया तो क्या फंसा है पेंच
आला सरकारी सूत्र के मुताबिक, महिला आरक्षण 2029 के लोकसभा चुनाव से संभव हो सकता है. आरक्षण को अमली जामा पहनाने के लिए लंबी संवैधानिक प्रक्रिया है. इस बिल को 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरुरत नहीं है. यानी संसद से पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ये कानून बन जाएगा. लेकिन सरकार सबसे पहले नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के रूल्स नोटिफाई करेगी. इसके बाद जनगणना का काम शुरू होगा. उसके बाद परिसीमन आयोग लोकसभा और विधानसभा परिसीमन का काम पूरा करेगा. महिला आरक्षण कानून जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लागू होगा.